शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

देश को राष्ट्र भक्तो की नही राष्ट्र निर्माता की जरुरत है

यह विचार मुझे तब आया जब मेरे ब्लॉग पर एक राष्ट्र भक्त बंधू की टिप्पडी थी ।
मुझे लगता है की रास्ट्र भक्ति और कुछ नही एक धोका और छलाबा है। ये एक डाकिया नूसी सोच है , गुलाम मानसिकता का प्रतीक है और सभ्य एबं प्रगतिशील समाज के लिए हितकारी नही है ।
अंग्रेजो ने सम्भवतः विश्व में जगह जगह अपने उपनिवेशों को बचाय रखने हेतु इस शब्द का इस्तेमाल किया हो,
या सम्भाब्तः हिंदुस्तान या किसी अन्य राष्ट्र के राजे राज बड़ों ने अपने जनता या लोके मत को बर्गालय रखेने हेतु इस शब्द का इस्तेमाल किया हो ।
बरहाल एक लोकतान्त्रिक समाज में जहा तरक्की की इच्छा होती है भक्त नही बल्कि निर्माता की जरुरत महसूस होती है ।
राष्ट्र के प्रति केबल भक्ति से काम नही चलेगा , हम अपने राष्ट्र की कमियों को भी महसूस करे और उसमे सुधार की इच्छा प्रकट करे तो जादा अच्छा होगा ।

आप मुझ से किसी भी विषय पैर मेरी राय जानना चाहे या मेरे बारे में कुछ जानना चाहे तो बे हिचक मुझे प्रश्न वाचक कमेन्ट भेजे मे यथा संभव उत्तर देने का प्रयास करुँगी

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