शनिवार, 18 अप्रैल 2009

आखिर लड़की ही हूँ.

एक घंटे नहाने में ।
दो घंटे शीशे के सामने ।
दो घंटे एवरेज चेटिंग में ।
एक घंटा एवरेज मार्केट ।
यही तो एक लड़की की पसंदीदा लाइफ है ।
बे हिचक मैं भी इस रूल को फोलो करती हूँ ।
बड़ा मजा आता है , पर कभी कभी लगता है की हम लड़कियां किस बेबकूफी में पड़े हुए है।
कभी कभी फक्र होता है की लड़किओं की इसी बेबकूफी की बजह से दुनीया इतनी खूब सूरत और हसीन है ।
बरना इस भाग दौड़ की जिन्दगी में जीने की फुर्सत किसे है ।
मर्द तो हमेशा कमाई के फेर में पड़े रहते है।
शायद इससे उनका इगो तुष्टहोता है ।
वह औरत ही है जो मर्द से कुछ समय ख़ुद को एबम कुछ समय फेमली को देने के लिए जिद्द करती है ।


दूसरी ओर - लड़किओं का इतना समय सजने धजने में देना और दुसरो को ध्यान से देखने में देना नितांत बेबकूफी
है , पर लड़किया दिमाग से सोचती ही कब हैं, बह दिल की मान कर चलती हैं और शायद इसी में दुनिया की भलाई है ।
जिस लड़की के पास दिमाग है और सजने में ध्यान नही देती उसके साथ गोड ने बहुत बुरा किया ।


आपकी प्रश्न वाचक टिप्पडी सादर आमंत्रित है, मैं उनका यथा समर्थ उत्तर देने
का प्रयास करुँगी। वायदा है।

1 टिप्पणी:

  1. बेहद सही बातें सुन्दरता से लिखी है, आपने एक ही पोस्ट में कई सरे सवाल पूछ डाले हैं.

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